The Mice That Ate Iron from Panchatantra Stories.
Some people don't learn a lesson unless they are kicked hard.

The Mice That Ate Iron

बिहार के एक शांत गाँव में, जो हरे-भरे पहाड़ों के बीच बसा था, दो बचपन के दोस्त, सोनू प्रसाद और गुड्डू प्रसाद, बिलकुल अलग ज़िंदगी जीते थे। सोनू प्रसाद एक साधारण और मेहनती इंसान था, जिसकी हथेलियाँ कठोर थीं और दिल साफ़ था, लेकिन वह हमेशा अपने खर्च पूरे करने के लिए जूझता रहता था। दूसरी ओर, गुड्डू प्रसाद अमीर था—उसके गोदाम अनाज से भरे रहते थे और उसकी हँसी में हमेशा जीतने का विश्वास झलकता था। लेकिन उसकी मीठी बातों के पीछे एक चालाक दिमाग छुपा था, जो हमेशा कुछ न कुछ योजना बनाता रहता था।

In a quiet village in Bihar, nestled between rolling hills, two childhood friends, Sonu Prasad and Guddu Prasad, lived very different lives. Sonu Prasad, a humble man with calloused hands and a trusting heart, struggled to make ends meet. Guddu Prasad, on the other hand, was wealthy—his storerooms overflowed with grain, and his laughter carried the confidence of a man who always got his way. But behind his smooth words lay a cunning mind, always calculating, always scheming.

एक शाम, जब सूरज आकाश को नारंगी रंगों से सजा रहा था, सोनू प्रसाद ने गुड्डू प्रसाद के सजे-धजे दरवाज़े पर दस्तक दी। “गुड्डू भैया,” उसने दृढ़ता भरी आवाज़ में कहा, “मैं अब अपने परिवार को भूखा नहीं देख सकता। मैं काम की तलाश में नवी मुंबई जा रहा हूँ। लेकिन जाने से पहले, मैं आपसे एक विनती करता हूँ—मेरी यह एकमात्र धरोहर, यह लोहे की छड़, जो मेरे दादाजी से विरासत में मिली है, इसे सँभालकर रखिएगा।”

गुड्डू प्रसाद की आँखें चमक उठीं जब उसने भारी और नक्काशीदार छड़ को हाथ में लिया। “बिल्कुल, मेरे दोस्त! यह मेरे भंडार में सोने की तरह सुरक्षित रहेगी। मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं, और भगवान हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे।”

कृतज्ञता से सिर हिलाकर, सोनू प्रसाद चल पड़ा, उसका दिल आशा और थकान दोनों से भरा था।

Guddu Prasad’s eyes gleamed as he took the heavy, intricately carved rod. "Of course, my friend! It will be as safe as gold in my storeroom. Go with my blessings." With a grateful nod, Sonu Prasad set off, his heart both hopeful and weary.

नवी मुंबई में सोनू प्रसाद के दो साल।

नवी मुंबई का सफर सोनू प्रसाद के लिए एक कठिन परीक्षा बन गया। उसकी पहली रातें निर्माण स्थलों पर गुज़रीं, जहाँ बेरहम धूप के नीचे सीमेंट मिलाते-मिलाते उसके पहले से ही खुरदुरे हाथों में नए छाले पड़ गए। कई बार तो मानसून की बारिश उसकी जर्जर झोपड़ी में रिसने लगती, और वह अपने दादाजी की लोहे की छड़ को याद करके हिम्मत बटोरता—यह संघर्ष स्थाई नहीं था।

दिन-रात की कड़ी मेहनत के बावजूद, वह हर पैसा जोड़ता रहा। कभी-कभी तो खुद भूखा रहकर भी घर पैसे भेज देता। शहर का शोर-गुल और भागदौड़ उसके दिल से गाँव की यादें नहीं मिटा पाया—जहाँ हरी-भरी पहाड़ियों के बीच उसके बच्चों की किलकारियाँ हवा में घुल जाया करती थीं।

Through backbreaking labor and sleepless nights, he saved every rupee, skipping meals to send coins home. The city's chaos never dulled his longing for the village's rolling hills, where his children's laughter once mingled with the evening breeze.

सोनू की वापसी

आखिरकार जब उसकी बचत से एक छोटा सा खेत और फसल के बीज खरीदने लायक पैसे हो गए, तो वह लौट आया—उसके कंधे अब मेहनत से मिली नई गरिमा से चौड़े थे। गाँव तो वैसा ही था, लेकिन सोनू अब वही इंसान नहीं रहा था जो कभी यहाँ से गया था। उसके पहले कदम घर की ओर नहीं, बल्कि गुड्डू प्रसाद के दरवाजे की ओर बढ़े।

"Guddu Bhaiya, I’ve come for my iron rod," Sonu Prasad said warmly.

“गुड्डू भैया, मैं अपनी लोहे की छड़ लेने आया हूँ,” सोनू प्रसाद ने स्नेह से कहा।

गुड्डू प्रसाद ने सिर हिलाते हुए एक लंबी साँस छोड़ी। “अरे भैया सोनू… बड़ी अजीब बात हो गई। मेरे कोठार के चूहों ने तुम्हारी छड़ समेत सारे धातु के सामान को कुतर डाला। अब तो बस जंग लगा हुआ टुकड़ा ही बचा है।”

सोनू प्रसाद का मुस्कुराता चेहरा गम्भीर हो गया। वह जानता था कि लोहा चूहों के पेट में नहीं जाता, लेकिन उसने बस सिर झुकाया। “समझ गया। कितना… दुर्भाग्यपूर्ण है।”

उस रात, वह अपने चूल्हे के पास बैठा आग को घूरता रहा। गुड्डू भैया का लालच अब हद पार कर चुका था। धीरे-धीरे उसके मन में एक योजना आकार लेने लगी।

Guddu Prasad sighed, shaking his head. “Ah, Sonu Prasad… a terrible thing happened. The mice in my storeroom—they chewed through that rod along with other metal objects. Nothing is left but rust.” Sonu Prasad’s smile faded. He knew iron didn’t vanish into mouse bellies, but he simply bowed. "I see. How… unfortunate."

अगली सुबह, जब गुड्डू प्रसाद घर पर नहीं थे, सोनू प्रसाद के नौकर ने उनकी पत्नी से कहा, “मालकिन, गुड्डू प्रसाद जी हमारे मालिक के घर पर हैं। उन्होंने आपके बेटे को बुलाया है—उसके लिए एक तोहफा रखा है।”

विश्वास करते हुए, उन्होंने बेटे को भेज दिया।

जब गुड्डू प्रसाद लौटे और अपने बेटे को आवाज़ लगाई, तो पत्नी ने हैरानी से पूछा, “आप उसे क्यों बुला रहे हैं? वह तो सोनू प्रसाद के नौकर के साथ कई घंटे पहले ही चला गया!”

गुड्डू प्रसाद के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह गुस्से में मुट्ठियाँ भींचे हुए सोनू प्रसाद के घर पहुँचा, “मेरा बेटा कहाँ है?”

सोनू प्रसाद ने दुखी चेहरे के साथ ऊपर देखा, “एक बाज, भैया। वह अचानक झपट्टा मारकर उसे उठा ले गया, हम कुछ कर ही नहीं पाए। आसमान… उसे अपने साथ ले गया।”

“तुम्हें लगता है मैं इस बात पर यकीन कर लूंगा?” गुड्डू प्रसाद ने गुस्से से कहा।

Guddu Prasad’s blood ran cold. He stormed to Sonu Prasad’s home, fists clenched. "Where is my son?" Sonu Prasad looked up, his face a mask of sorrow. "A hawk, brother. It swooped down and carried him off before we could react. The skies… they took him."

गाँव की पंचायत पुराने बरगद के पेड़ के नीचे जमा हुई। सरपंच, जिनकी आवाज़ कर्कश पर विवेकपूर्ण थी, ने दोनों पक्षों की बात सुनी।

“सोनू प्रसाद,” उन्होंने गंभीर स्वर में कहा, “एक बाज़ कभी बच्चे को उठा नहीं सकता। सच बताओ।”

सोनू प्रसाद ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया: “माननीय पंचों, अगर चूहे लोहे की छड़ चबा सकते हैं, तो बाज़ बच्चे को क्यों नहीं उठा सकता?” फिर उसने पूरी घटना विस्तार से बताई – कैसे गुड्डू ने उसकी विरासत की छड़ हड़प ली थी, और कैसे उसने सिर्फ़ एक सबक सिखाने के लिए गुड्डू के बेटे को सुरक्षित जगह पर रखवा दिया था।

भीड़ में सनसनी फैल गई। गुड्डू प्रसाद का चेहरा शर्म और गुस्से से तमतमा उठा जब सच्चाई सामने आई।

The village panchayat gathered under the old banyan tree. The headman, a wise elder with a voice like gravel, listened to both sides. "Sonu Prasad," he said, "a hawk cannot lift a child. Speak the truth."

मुखिया ने गहरी साँस लेकर कहा, “गुड्डू प्रसाद, छड़ वापस करो। झूठ से झूठ ही जन्म लेता है, लेकिन ईमानदारी से ही विश्वास बनता है।”

शर्मिंदा होकर, गुड्डू प्रसाद ने छड़ लौटा दी। उस रात, जब जुगनू अंधेरे में चमक रहे थे, उसने मन ही मन कभी किसी का विश्वास न तोड़ने की कसम खाई।

अगली सुबह, सोनू अपने खेत में छड़ को जमीन में गाड़ रहा था। उसकी पत्नी ने पूछा: “यह क्या कर रहे हो?”
सोनू प्रसाद मुस्कुराया: “इसे विश्वास की नींव बना रहा हूँ… ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें – ईमानदारी ही सच्चा धन है।”

सीख: धोखा हमेशा लौटकर आता है—कई बार उसकी कीमत समझाने के लिए एक चतुर सबक जरूरी होता है। कपटी दोस्तों से सावधान रहें।

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