एक मूर्तिकार को अपनी एक मूर्ति को दूर के शहर में एक ग्राहक को पहुंचाना था। उसने मूर्ति को आखिरी बार अच्छे से चमकाया और उसे अपने गधे की पीठ पर लादा, और चल पड़ा।
खूबसूरती से बनाई गई मूर्ति सूरज की रोशनी में चमक रही थी, और सड़क पर कई लोग इसकी शानदार कारीगरी की प्रशंसा करने के लिए रुक गए। कई राहगीरों ने मूर्ति के सामने सम्मानपूर्वक सिर झुकाया।
अब, सभी गधे थोड़े मूर्ख होते हैं। लेकिन यह गधा अन्य गधों से भी अधिक मूर्ख था। वह एक अविश्वसनीय रूप से मूर्ख जानवर था। उसने सोचा कि प्रशंसा की ‘ओह‘ और ‘आह‘ उसके लिए थी। गधे ने यह भी सोचा कि लोग उसे सम्मान देने के लिए झुक रहे हैं। वह पूरी तरह भूल गया कि वह सिर्फ एक गधा है (एक भारवाहक पशु) जिसकी पीठ पर मूर्ति है। उसे एक पल के लिए भी याद नहीं आया कि वह कोई मूर्ति ले जा रहा है।

यह मूर्ख जानवर, जो महसूस कर रहा था कि लोग उसके प्रति श्रद्धा और प्रशंसा दिखा रहे हैं, इस भावना से इतना उत्साहित हो गया कि वह सड़क के बीच में खड़ा हो गया, जोर-जोर से रेंकने लगा और आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। उसके मालिक को जल्द ही एहसास हुआ कि उसके गधे के मूर्ख दिमाग में क्या चल रहा है, और उसने उस दुष्ट जानवर को जोर से पीटा और उसे आगे बढ़ने के लिए धकेला।
“अगर तुम्हारे पास जरा भी समझ होती,” मूर्तिकार चिल्लाया, “तो तुम समझ जाते कि कोई भी आदमी गधे को प्रणाम नहीं कर सकता। तुम्हारी मूर्खता ने तुम्हें केवल पिटाई ही दिलाई है।”
कहानी का सार:- यदि आप मूर्खतापूर्वक अपने आस-पास की स्थिति का सही अर्थ नहीं समझते हैं तो आपको नुकसान होगा।
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