शांत चरागाह और चरवाहे की बांसुरी
नदी के उपजाऊ तट पर बसे गाँव का एक चरवाहा हर सुबह अपनी भेड़ों को लेकर हरे-भरे चरागाह की ओर निकल पड़ता। यह भूमि सचमुच समृद्ध थी—सालभर लहलहाती हरी घास का समुद्र, जिसमें जगह-जगह घने और छायादार उपवन द्वीपों की तरह बिखरे हुए थे। इन उपवनों में जीवन की चहल-पहल थी—कहीं खरगोश की तेज़ दौड़, कहीं हिरण की सुंदर छलाँग, तो कहीं गीदड़ या लोमड़ी की धीमी चाल।
चरवाहे के लिए यह एक शांत और सहज दिनचर्या थी। जब उसकी भेड़ें तृप्त होकर घास चरतीं, वह किसी बड़े पेड़ की छाँव तले बैठ जाता और बांसुरी से मधुर भरे स्वर बिखेरता। जैसे ही सूरज ढलने लगता, वह अपनी भेड़ों को समेटकर घर ले आता, उन्हें बाड़े में सुरक्षित करता और रात की निस्तब्धता में उनकी रखवाली के लिए चौकस कुत्ते को छोड़ देता।

दो मेढ़े: सींगों और स्वभाव का टकराव
भेड़ों के उस झुंड में दो मेढ़े भी थे, जो हमेशा आपस में बैर रखते थे। उनका यह अनोखा युद्ध उतना ही निश्चित था जितना सूरज का डूबना। घास चरकर अपनी ताक़त जुटाने के बाद, वे एक-दूसरे को ढूँढ़ निकालते, नाक से नाक मिलाकर आग भरी नज़रें डालते—जैसे कह रहे हों कि टकराव अब टल नहीं सकता। यह मौन चुनौती जल्दी ही भीषण द्वंद्व में बदल जाती, और उनके सींगों की गड़गड़ाती टक्कर पूरे चरागाह में गूँज उठती।
चरवाहे की कोशिशें उन्हें अलग करने में असफल रहतीं। वे मानो जन्म-जन्मांतर के दुश्मन थे, अपने क्रोध के ग़ुलाम। खून से लथपथ और घायल होने पर भी वे पीछे हटते सिर्फ़ ताक़त बटोरने के लिए—ताकि अगली बार और भी भयंकर टक्कर के साथ एक-दूसरे को चोट पहुँचा सकें।

झाइयों से एक चौकस नज़र: लालची सियार
जलग्रहण क्षेत्र के एक उपवन में और झुरमुट की छाया में एक सियार रहता था। वह स्वभाव से बहुत लालची था। जब भी उसने लड़ते हुए मेढ़ों के माथे से खून बहता देखा, तो उसने अपनी पंजे चाटे और खुद से कहा, “इन लड़ते हुए मेढ़ों का खून कितना स्वादिष्ट होगा ! काश मैं इसे चाट पाता और इसके स्वाद का आनंद ले पाता।"
एक धूर्त योजना का जन्म
सियार कई दिनों तक मेढ़ों की लड़ाई देखता रहा। लेकिन उसी दौरान वह खून से लथपथ मेढ़ों के पास जाकर उनके गर्म खून को चाटने का कोई तरीका खोजने के लिए गहन चिंतन करता रहा। अचानक उसके मन में एक नीच विचार आया। उसने खुद से कहा, "जब ये दोनों मेढ़े अपने खून बहते माथे के साथ लड़ेंगे, तो मैं एक अच्छे शांतिदूत की तरह व्यवहार करूंगा और उनकी लड़ाई रोकने के बहाने उनके बीच में खड़ा हो जाऊंगा। वे निश्चित ही मेरे प्रति आदरभाव रखेंगे। फिर मैं बारी-बारी से उनके माथे को अपनी जीभ से साफ करने का नाटक करूंगा। इस प्रकार मुझे उनके खून के स्वाद का आनंद लेने का मौका मिल जाएगा।"
सियार की फुसफुसाहट: धोखे के बीज बोना
सियार स्वभाव से बहुत चालाक होते हैं, इसीलिए वह लालची सियार कभी नहीं चाहता था कि मेढ़े लड़ना छोड़ दें। वह जानता था कि यदि ऐसा हुआ, तो वह उनके खून का स्वाद नहीं चख सकेगा। इसलिए, उसने उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने का फैसला किया। इसलिए, जब अगले दिन चरवाहा चरागाह में आया, तो सियार उनमें से एक के पास गया और बोला, "क्या आप जानते हैं कि आपका दुश्मन आपके खिलाफ मेरी मदद मांगने के लिए मेरे पास आया था? लेकिन मैंने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया। बेशक, मैं आपकी मदद करने के लिए तैयार हूं, क्योंकि मेरी वफादारी सबसे मजबूत जानवर के प्रति है।"

"आख़िर कैसे ?" मेढ़े ने गुर्राते हुए पूछा, उसकी जिज्ञासा जाग उठी।
सियार ने कहा, “जब तुम लड़ने में व्यस्त रहोगे तो मैं हस्तक्षेप करूंगा और तुम दोनों को शांत करने का प्रयास करूंगा। यह निश्चित रूप से आपके प्रतिद्वंद्वी को थोड़ा लापरवाह बना देगा। और फिर आपके पास उस पर अचानक हमला करने और उसे वहीं खत्म करने का मौका मिल जायेगा।”
मेढ़े ने संतुष्टि से सिर हिलाया, सियार की बातों पर पूरा भरोसा कर बैठा। उसे कहाँ पता था कि इस षड्यंत्रकारी की वफ़ादारी केवल एक मृगतृष्णा थी—जो लालच से उपजी थी।
“अब,” सियार पीछे हटते हुए बोला, “मुझे तैयारी करनी होगी। मुझे योजना को परिपूर्ण बनाने दो। मेरे संकेत का इंतज़ार करना।”
दोहराई हुई कहानी: दूसरे मेढ़े को छल से फँसाना
अगले दिन सियार दूसरे मेढ़े के पास गया। उसने दिखावटी सम्मान के साथ फुसफुसाते हुए कहा, “श्रीमान, मैं आपसे अकेले में एक बहुत महत्वपूर्ण विषय पर बात करना चाहता हूँ।” वह उसे झुंड से दूर ले गया। फिर सियार ने मेढ़े से कहा, “क्या आप जानते हैं, आपका दुश्मन मेरे पास आया था और आपके खिलाफ मेरी मदद मांग रहा था? लेकिन मैंने उसकी मदद करने से साफ़ इनकार कर दिया। मैं चाहता हूँ कि मैं आपकी मदद करूं, लेकिन सिर्फ़ परोक्ष रूप से।”

“कैसे?” मेढ़े ने अधीरता से खुर पटकते हुए पूछा।
“सही समय पर,” सियार ने मीठे स्वर में कहा। “लड़ाई के उन्माद में, मैं बीच में आ जाऊँगा। वह चौंक जाएगा—क्षणभर हिचकिचाएगा। उसी एक पल में, तुम्हें अपनी पूरी ताक़त से अंतिम, घातक वार करना होगा। इससे पहले कि उसे कुछ समझ आए, सब खत्म हो जाएगा।”
इस तरह, सियार ने दोनों के मन में एक जैसा ज़हरीला भ्रम बो दिया और अपना जाल सफलतापूर्वक बुन लिया।
युद्ध का आरंभ: क्रोध का उन्माद
अगले ही दिन, वातावरण में तनाव की बिजली-सी कौंध थी। हरी-भरी घास को अनदेखा कर, दोनों मेढ़े एक-दूसरे के चारों ओर घूम रहे थे, सियार के झूठ से उनकी नफ़रत और भड़क उठी थी। गर्जना के साथ वे भिड़ गए। यह उनकी सामान्य लड़ाई नहीं थी—यह तो उग्र क्रोध का तूफ़ान था। उनके सींग आपस में ऐसे गूँजे मानो लकड़ी चटक रही हो, और शीघ्र ही उनके चेहरे खून से लथपथ हो गए।
अपने छिपने के स्थान से सियार लार टपकाते हुए देख रहा था। समय आ चुका था।
सियार का घातक हस्तक्षेप
वह युद्ध के मैदान में कूद पड़ा और झूठी चिंता से भरी चीख लगाई—
“बस करो यह पागलपन! रुक जाओ!”
परंतु क्रोध में अंधे मेढ़ों ने उसकी बात न सुनी। वे क्षणभर अलग हुए और फिर सिर झुकाकर दोबारा दौड़ने को तैयार हुए। तभी सियार ने अवसर देखा और सीधे उनके बीच जा पहुँचा।
“मेरी बात सुनो!” वह चीखा।
क्षणभर के लिए, मेढ़े रुक गए, बाधा से भ्रमित हो गए। उनके लिए यह रुकावट अजीब थी। उन्होंने जोर से फूँकारा, मानो कह रहे हों कि यह मूर्ख भाग जाए। लेकिन सियार अड़ा रहा—उसकी नज़रें उन पर नहीं, बल्कि बहते खून पर टिकी थीं।
और यही एकमात्र मौक़ा था जो उन्होंने उसे दिया।
एक साथ दहाड़ते हुए दोनों मेढ़े झपट पड़े। सियार के पास चीखने तक का समय न था। दो विशाल शक्तियों के बीच सियार की देह पिस गई। भयंकर धमाके के साथ वह वहीं कुचला गया—अपने ही रचे हिंसा के षड्यंत्र का शिकार बनकर, कुचली हुई घास पर निःजीव पड़ा रह गया।

लालच की कीमत: उजागर हुई सीख
इस तरह, सियार का लालच उसी के लिए जाल बन गया। जिस खून की उसे इतनी प्यास थी, आखिरकार वह अपने ही खून का स्वाद चखने पर मजबूर हो गया।
दोनों मेढ़े, उस भयावह दुर्घटना से थककर और अपनी क्रोधाग्नि को शांत कर, अलग हो गए और धीरे-धीरे चरागाह में खो गए। उनका झगड़ा भुला दिया गया।
चरवाहे की बांसुरी की मधुर धुन फिर से शांत चरागाह में गूँज उठी, मानो एक प्राचीन और सरल सत्य को रेखांकित करती हुई—
लालच एक अभिशाप है, जो हमें ख़तरे से अंधा कर देता है। यह हमें दावत का वादा करता है, पर अंत में केवल दुखद मृत्यु ही सौंपता है।
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